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अपना-अपना भाग्य - साहित्य सागर |
नैनीताल की संध्या धीरे-धीरे उतर रही थी।
(क) नैनीताल की संध्या की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर : नैनीताल की संध्या के समय में रूई के रेशे से, भाप के बादल बेरोक घूम रहे थे। हलके प्रकाश और अँधियारी से रंग कर कभी वे नीले दिखते, कभी सफ़ेद और फिर ज़रा लाल पड़ जाते, जैसे खेलना चाह रहे हों।
(ख) लेखक अपने मित्र के साथ कहाँ बैठा था? वह वहाँ बैठा-बैठा बोर क्यों हो रहा था और क्यों कुढ़ रहा था?
उत्तर : लेखक और उसका मित्र नैनीताल की एक सड़क के किनारे बेंच पर बैठे थे। वह वहाँ बैठा बोर इसलिए हो रहा था क्योंकि दिन-भर निरुद्देश्य घूमने के बाद वह थक चुका था और रात होने वाली थी। वह कुढ़ इसलिए रहा था कि वह और बैठना नहीं चाहता था परंतु उसका मित्र वहाँ थोड़ा और रुकना चाहता था।
(ग) लेखक के मित्र को अचानक क्या दिखाई पड़ा? उसका परिचय दीजिए।
उत्तर : लेखक को कुहरे की सफ़ेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली-सी मूर्ति अपनी ओर आती दिखाई दी। तीन गज की दूरी से एक लड़का सिर के बड़े-बड़े बाल खुजलाता चला आ रहा था। वह नंगे पैर, नंगे सिर था तथा एक मैली-सी कमीज़ पहने था। उसके पैर न जाने कहाँ पड़ रहे थे और वह न जाने कहाँ जा रहा था और कहाँ जाना चाहता था।
(घ) ज़रा-सी उम्र में उसकी मौत से पहचान कैसे हो गई थी?
उत्तर : लड़के ने छोटी-सी उम्र में ही इतने अधिक दुख और कष्ट देख लिए थे कि अब उसके लिए सब मुसीबतें, कष्ट यहाँ तक कि मृत्यु भी सामान्य बात हो गई थी। लड़के का एक साथी था, जो कि उसी के गाँव का था और उससे बड़ा था। दोनों साथ ही गाँव से शहर आए थे। उसके साहब ने उसे मारा था, इसलिए वह मर गया। इस प्रकार छोटी-सी उम्र में उसकी मौत से भी पहचान हो गई थी।
बालक फिर आँखों से बोलकर मूक खड़ा रहा।' आँखें मानो बोलती थीं- 'यह भी कैसा मूर्ख प्रश्न है।
(क) किस प्रश्न को सुनकर बालक मूक खड़ा रहा? उसकी आँखों ने क्या कह दिया ?
उत्तर: जब लेखक के मित्र ने लड़के से पूछा कि क्या वह उन्हीं कपड़ों में सो जाएगा, जो उसने पहने हुए हैं, तो इस प्रश्न को सुनकर बालक कोई जवाब नहीं दे पाया, परंतु उसकी आँखें मानो पूछ रही हों कि यह कैसा मूरों वाला प्रश्न है ?
(ख) अपने परिवार के बारे में बालक ने क्या बताया?
उत्तर : लड़के ने बताया कि उसके माँ-बाप जीवित हैं तथा पंद्रह कोस दूर गाँव में रहते हैं। उसके कई भाई-बहन हैं। भाई-बहन, माँ-बाप भूखे रहते थे। माँ रोती रहती थी इसलिए वह वहाँ से भाग आया।
(ग) लेखक को बालक की किस बात को सुनकर अचरज हुआ?
उत्तर : लेखक को लड़के की वह बात सुनकर अचरज हुआ, जब उसने कहा कि उसका एक साथी भी था, जो मर गया। ज़रा-सी उम्र में इसकी मौत से पहचान हो गई।'–यह बात सुनकर लेखक को अचरज हुआ।
(घ) लेखक और उसका मित्र बालक को कहाँ ले गए और क्यों? वकील साहब का पहाड़ी बालकों के संबंध में क्या मत था ?
उत्तर : लेखक और उसका मित्र बालक को लेकर अपने एक मित्र वकील के होटल में पहुँचे क्योंकि वकील को नौकर की आवश्यकता थी। लेखक का मित्र चाहता था कि उसका वकील दोस्त इस लड़के को नौकर के रूप में रख ले। वकील साहब ने उस लड़के को नौकर के रूप में नहीं रखा क्योंकि उन्होंने कहा कि ये पहाड़ी लड़के बड़े शैतान होते हैं। बच्चे-बच्चे में अवगुण छिपे होते हैं। यदि किसी ऐरे-गैरे को नौकर बना लिया जाए, तो क्या जाने वह अगले ही दिन क्या-क्या लेकर चंपत हो जाए।
भयानक शीत है। उसके पास कम बहुत कम कपड़े....? 'यह संसार है यार', मैंने स्वार्थ की फिलासफी सुनाई।
(क) लेखक के मित्र की उदासी का कारण स्पष्ट करते हुए बताइए कि वह पहाड़ी बालक की सहायता क्यों नहीं कर सका ?
उत्तर: उस पहाड़ी बालक को के पास नौकर रखवाना चाहता था खाने को रोटी भी मिल जाए और रहने को जगह भी। परंतु उनके मित्र वकील की पहाड़ी लड़कों के बारे में अलग राय थी। वे उन पर विश्वास नहीं करते थे इसलिए उन्होंने उसे नौकर नहीं रखा। लड़के की सहायता न कर सकने के कारण लेखक का मित्र उदास था।
(ख) 'यह संसार है यार'-वाक्य आजकल के मनुष्यों की किस प्रवृत्ति का द्योतक है ?
उत्तर : प्रस्तुत कहानी में लेखक कहना चाहते हैं कि आज के लोगों में दया और मानवता की भावना शून्य होती जा रही है। लोग किसी विवश व अभावग्रस्त दुखी बालक पर दया नहीं दिखाते। वकील साहब जैसे लोग स्वार्थी, हृदयहीन और संवेदनहीन हैं।
(ग) “अपना-अपना भाग्य' कहानी में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।
उत्तर: 'अपना-अपना भाग्य' कहानी में एक ऐसे निर्धन, असहाय तथा शोषित पहाड़ी बालक का चित्रांकन किया गया है, जो परिवार की गरीबी से तंग आकर भागकर नैनीताल आ जाता है, परंतु यहाँ आकर भी उसके दुखों का अंत नहीं होता। दुर्भाग्य, भूख तथा गरीबी के थपेड़ों के कारण वह बर्फ में ठिठुरकर मर जाता है। लोगों की संवेदनशून्यता, कठोरता तथा स्वार्थ-भावना का चित्रण करते हुए कहानीकार मार्मिक तथा हृदयस्पर्शी बिंदु पर जाकर कहानी का अंत करता है।
(घ) 'अपना-अपना भाग्य'. -कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: अपना-अपना भाग्य' कहानी का शीर्षक सर्वथा सार्थक है। यह कहानी स्पष्ट करती है कि आज के लोगों में दयालुता तथा परोपकार जैसे मूल्यों का अभाव हो गया है, जिसके कारण किसी मज़बूर तथा दयनीय स्थिति में जूझते व्यक्ति की सहायता करने की अपेक्षा उसकी स्थिति को 'अपना-अपना भाग्य' बताकर हर कोई अपनी ज़िम्मेदारी से बचना चाहता है। अमीर लोग अपनी संपत्ति के कारण मौज उड़ाते हैं। उन्हें दूसरों के दुख-दर्द से कोई सरोकार नहीं होता।