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Workbook Answers of Matribhumi Ka Maan - Ekanki Sanchay

Workbook Answers of Matribhumi Ka Maan - Ekanki Sanchay
मातृभूमि का मान - एकांकी संचय


महाराव ; आज राजपूतों को एक सूत्र में गूंथे जाने की बड़ी आवश्यकता है और जो व्यक्ति यह माला तैयार करने की ताकत रखता है, वह है महाराणा लाखा।


(क) वक्ता और श्रोता कौन हैं ? वाक्य का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : वक्ता मेवाड़ का सेनापति अभयसिंह है और श्रोता बूंदी का शासक राव हेमू है। मेवाड़ नरेश महाराणा लाखा ने सेनापति अभयसिंह से बूंदी के राव हेमू के पास संदेश भिजवाया कि बूंदी मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करे ताकि राजपूतों की असंगठित शक्ति को संगठित करके एक सूत्र में बाँधा जा सके, परंतु राव हेमु ने यह कहकर उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि हाड़ा वंश किसी की गुलामी स्वीकार नहीं करता, चाहे वह विदेशी शक्ति हो, चाहे मेवाड़ का महाराणा हो। तब अभयसिंह ने उपर्युक्त कथन कहा था। 


(ख) राणा लाखा बूंदी को मेवाड़ के अधीन क्यों करना चाहते थे ?

उत्तर : राणा लाखा बूंदी को मेवाड़ के अधीन इसलिए करना चाहता है ताकि राजपूतों की असंगठित शक्ति को संगठित करके एकसूत्र में बाँधा जा सके।


(ग) वक्ता ने महाराणा लाखा के संबंध में क्या कहा ?

उत्तर : अभयसिंह ने राव हेमू से कहा कि आज राजपूतों को एकसूत्र में गूंथे जाने की बड़ी आवश्यकता है और जो व्यक्ति यह माला तैयार करने की ताकत रखता है, वह है महाराणा लाखा।


(घ) राव हेमू के अनुसार हाड़ा वंश किस प्रकार का अनुशासन मान सकते हैं ?

उत्तर : राव हेमू के अनुसार हाड़ा वंश प्रेम का अनुशासन मानने को सदा तैयार है, शक्ति का नहीं। बूंदी स्वतंत्र राज्य और स्वतंत्र रहकर महाराणाओं का आदर करता रह सकता है परंतु अधीन होकर किसी की सेवा करना वह पसंद नहीं करता।


ताकत की बात छोड़ो, अभय सिंह ! प्रत्येक राजपूत को अपनी ताकत पर नाज़ है। इतने बड़े दंभ को मेवाड़ अपने प्राणों में आश्रय न दे, इसी में उसका कल्याण है। रह गई बात एक माला में गूंथने की, सो वह माला तो बनी है। हाँ, उस माला को तोड़ने का श्रीगणेश हो गया है।


(क) उपर्युक्त कथन किसने तथा किस संदर्भ में कहा है ?

उत्तर : उपर्युक्त कथन बूंदी के शासक राव हेमू ने मेवाड़ के सेनापति अभयसिंह को तब कहे, जब अभयसिंह महाराणा लाखा की ताकत का उल्लेख करता है कि केवल महाराणा लाखा ही राजपूतों की असंगठित शक्ति को संगठित करके एकसूत्र में बाँध सकता है।


(ख) अभयसिंह का परिचय दीजिए। वह क्या संदेश लेकर आए हैं ?

उत्तर : अभयसिंह महाराणा लाखा के सेनापति हैं। वह एक कुशल सेनापति ही नहीं बल्कि बुद्धिमान और कर्तव्यपरायण भी हैं। महाराणा भी उन पर विश्वास करते हैं इसीलिए वे राव हेमू तक अपना संदेश उन्हीं के द्वारा भेजते हैं। उन्होंने यह संदेश भिजवाया था कि बूंदी मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करे ताकि राजपूतों की असंगठित शक्ति को संगठित किया जा सके।


(ग) वक्ता ने अभयसिंह से किस प्रकार के अनुशासन को मानने की बात कही ?

उत्तर : राव हेमू ने अभयसिंह को कहा कि हाड़ा वंश प्रेम का अनुशासन मानने को सदा तैयार है, शक्ति का नहीं। बूंदी स्वतंत्र रहकर महाराणाओं का आदर कर सकता है, परंतु अधीन होकर किसी की सेवा करना वह पसंद नहीं करता।


(घ) 'वह माला तो बनी हुई है। हाँ, उस माला को तोड़ने का श्रीगणेश हो गया है।' आशय स्पष्ट कीजिए। 4 -

उत्तर : यह पंक्ति बूंदी के शासक राव हेमू ने मेवाड़ के सेनापति अभयसिंह से कही। वे कहते हैं कि राजपूत तो पहले से ही संगठित हैं, परंतु अब मेवाड़ का शासक महाराणा लाखा उस संगठित शक्ति को तोड़कर स्वयं को शक्तिशाली बनाना चाहता है।


प्रेम का अनुशासन मानने को हाड़ा-वंश सदा तैयार है, शक्ति का नहीं। मेवाड़ के महाराणा को यदि अपने ही जाति-भाइयों पर अपनी तलवार आज़माने की इच्छा हुई है, तो उससे उन्हें कोई रोक नहीं सकता है।



(क) उपर्युक्त कथन किसने, किससे, कब और क्यों कहा ?

उत्तर : उपर्युक्त कथन बूंदी के शासक ने मेवाड़ के सेनापति राव हेमू से तब कहे, जब राव हेमू ने उसे मेवाड़ की अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा, क्योंकि बूंदी किसी के अधीन होकर उसकी ताकत स्वीकार नहीं कर सकती। वह स्वतंत्र रहकर महाराणाओं का आदर तो कर सकती है। 


(ख) 'प्रेम के अनुशासन' का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : बूंदी का शासक राव हेमू प्रेम के अनुशासन की बात करता है। उसके अनुसार हाड़ा वंश किसी की गुलामी स्वीकार नहीं करेगा, चाहे वह विदेशी शक्ति हो अथवा महाराणा लाखा की। वह केवल प्रेम का अनुशासन जानता है, शक्ति का नहीं।


(ग) मेवाड़ के महाराणा ने क्या प्रतिज्ञा की थी और क्यों ?

उत्तर : मेवाड़ के महाराणा लाखा ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक बूंदी के दुर्ग में सेना के सहित प्रवेश नहीं कर लेगा, तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करेगा। यह प्रतिज्ञा उन्होंने इसलिए की क्योंकि महाराणा लाखा को नीमरा के मैदान में बूंदी के शासक राव हेमू से पराजित होकर भागना पड़ा था। वे इस घटना को कलंक का टीका कहते हैं और इस कलंक के टीके को धो डालना चाहते हैं।


(घ) महाराणा लाखा के अनुसार उन्होंने मेवाड़ के गौरवपूर्ण इतिहास में कलंक का टीका किस प्रकार लगाया है ?

उत्तर : महाराणा लाखा ने कहा कि जब से नीमरा के मैदान में बूंदी के राव हेमू से पराजित होकर उनके सैनिकों को भागना पड़ा है, तब से उनकी आत्मा तुम्हें धिक्कार रही है। उनके लिए यह बहुत कलंक की बात है। 


जिनकी खाल मोटी होती है, उनके लिए किसी भी बात में कोई भी अपयश, कलंक या अपमान का कारण नहीं होता, किंतु जो आन को प्राणों से बढ़कर समझते आए हैं, वे पराजय का मुख देखकर भी जीवत रहें, यह कैसी उपहासजनक बात है।


(क) वक्ता कौन है ? उसका परिचय दीजिए।

उत्तर : वक्ता महाराणा लाखा है, जो मेवाड़ के शासक हैं। वे वीर, देशभक्त तथा दृढ़ चरित्र के व्यक्ति हैं। उनकी इच्छा है कि अन्य छोटे-छोटे राज्यों को अपने राज्य में मिलाकर एक राष्ट्र बनाकर एक सूत्र में बाँधे। उन्हें अपनी ताकत पर नाज़ है। वे एक संवेदनशील व्यक्ति हैं।


(ख) 'खाल मोटी होना' का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है और क्यों ?

उत्तर : 'खाल मोटी होना' का अर्थ है कि बेशर्म होना अथवा किसी बात का कोई असर न होना। कुछ लोग कभी भी अपने-आप को कलंकित या अपमानित महसूस नहीं करते, चाहे उन्हें कितनी बड़ी पराजय का सामना क्यों न करना पड़े। इधर महाराणा लाखा का मानना है कि जब से उन्हें नीमरा के मैदान में दी के राव हेमू से पराजित होकर भागना पड़ा, तब से उनकी आत्मा उन्हें धिक्कार रही है कि उन्होंने मेवाड़ के गौरवपूर्ण इतिहास में कलंक का टीका लगाया है।


(ग) 'उपहासजनक बात' का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: उपहासजनक बात अर्थात् हास्यस्पद बात। महाराणा लाखा को यह बात हास्यस्पद लगती है कि उन जैसे लोग जो अपने सम्मान को अपने प्राणों से भी बढ़कर मानते हैं, वे बूंदी के राव हेमू से पराजित होकर भी जीवित हैं, उन्हें जीने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वे मेवाड़ के लिए कलंक के समान हैं। 


(घ) वक्ता अपने मस्तक से कलंक के किस टीके को किस प्रकार धो डालना चाहता है ? 

उत्तर : महाराणा लाखा प्रतिज्ञा करता है कि जब तक वह बूंदी के दुर्ग में ससैन्य प्रवेश नहीं कर लेगा, तब तक अन्न-जल नहीं ग्रहण करेगा।


इसमें संदेह नहीं कि अंतिम विजय हमारी होगी, किंतु यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि इसमें कितने दिन लग जाएँगे।


(क) वक्ता और श्रोता कौन हैं ? उसने बूंदी की किस धृष्टता की ओर संकेत किया है ?

उत्तर : वक्ता अभयसिंह है तथा श्रोता महाराणा लाखा हैं। अभयसिंह ने दी की धृष्टता का उल्लेख करते हुए कहा की नीमरा के मैदान में, बूंदी के हाड़ाओं ने रात के समय अचानक उनके शिविर पर आक्रमण कर दिया था। आकस्मिक धावे से घबराकर उनके सैनिक भाग खड़े हुए थे। हाड़ा के वीरों के संबंध में क्या कहा और क्यों ?


(ख) वक्ता ने हाड़ा के वीरों के संबंध में क्या कहा और क्यों ?

उत्तर : अभयसिंह ने हाड़ा के वीरों के संबंध में बताते हुए कहा कि हाड़ा लोग बहुत वीर हैं। युद्ध करने में वे यम से भी नहीं डरते। उसने हाड़ा लोगों की वीरता का उल्लेख इसलिए किया क्योंकि उन वीरों को पराजित करने में कितने दिन लग सकते हैं और महाराणा ने इतनी भीषण प्रतिज्ञा कर ली है। कलंक को धोना चाहते थे ?


(ग) महाराणा लाखा अपने मस्तक से किस कलंक को धोना चाहते थे ?

उत्तर:  महाराणा के अनुसार उन्होंने मेवाड़ के गौरवपूर्ण इतिहास में कलंक का टीका लगाया है। नीमरा के मैदान में बूंदी के हाड़ाओं ने रात के समय अचानक महाराणा के शिविर पर आक्रमण कर दिया था। आकस्मिक धावे से घबराकर उनके सैनिक भाग खड़े हुए थे। इससे मेवाड़ के आत्म-गौरव को बहुत अधिक ठेस लगी थी। यह मेवाड़ के माथे पर कलंक था, जिसे वे धोना चाहते थे।


(घ) महाराणा लाखा ने क्या प्रतिज्ञा की ? उसे पूरी करने के लिए क्या योजना बनाई गई और क्यों ?

उत्तर : महाराणा लाखा ने प्रतिज्ञा की कि जब तक वह बूंदी के दुर्ग में सेना सहित प्रवेश नहीं कर लेगा, तब तक वह अन्न-जल नहीं ग्रहण करेगा। जब चारणी को इस बात का पता लगता है, तो वह एक उपाय बताती है कि यहीं पर बूंदी का एक नकली दुर्ग बनाया जाए। महाराणा उसका विध्वंस करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लें। यह योजना इसलिए बनाई गई क्योंकि बूंदी के वीरों को पराजित करने में न जाने कितने दिन लग जाएँ और महाराणा लाखा की प्रतिज्ञा बहुत कठोर थी। ।


क्या कभी आपने सुना है कि सूर्यवंश में पैदा होने वाले पुरुष ने अपनी प्रतिज्ञा को वापस लिया हो ? 'प्राण जाएँ पर वचन न जाए' यह हमारे जीवन का मूलमंत्र है। जो तीर तरकश से निकलकर, कमान पर चढ़कर छूट गया, उसे बीच में नहीं लौटाया जा सकता।


(क) वक्ता का परिचय दीजिए और उसके द्वार व्यक्त किए गए विचारों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : यह कथन मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा का है, जो उन्होंने अपने सेनापति अभयसिंह से कहा है। जब अभयसिंह उन्हें अपनी प्रतिज्ञा वापस लेने के लिए कहता है, तो वे कहते हैं कि सूर्यवंश में पैदा होने वाले वीर अपनी प्रतिज्ञा को वापस नहीं लेते। उनके जीवन का मूलमंत्र है प्राण बेशक चले जाएँ पर वचन निभाकर रहते हैं।


(ख) वक्ता ने सूर्यवंश के संबंध में क्या कहा है ?

उत्तर : महाराणा लाखा ने कहा कि सूर्यवंश में पैदा होने वाले वीर पुरुष कभी अपनी प्रतिज्ञा वापस नहीं लेते। उनके जीवन का मूलमंत्र है कि उनके प्राण चाहे चले जाएँ, पर वे वचन से नहीं फिरते।


(ग) वक्ता ने उपर्युक्त कथन श्रोता के किस कथन के उत्तर में कहे ?

उत्तर : जब मेवाड़ के सेनापति अभयसिंह ने मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा को कहा कि बूंदी के हाड़ा लोग कितने वीर हैं । युद्ध करने में वे यम से नहीं डरते और युद्ध में कितने दिन लग जाएँ, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए आप ऐसी भीषण प्रतिज्ञा न करें। तब महाराणा ने उपर्युक्त वचन कहे थे। 


(घ) 'मातृभूमि का मान' एकांकी का संदेश स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : 'मातृभूमि का मान' एकांकी में हाड़ा राजपूत वीर सिंह के बलिदान का चित्रण किया गया है। एकांकी में यह संदेश दिया गया है कि राजूपतों के लिए अपनी मातृभूमि का मान सर्वोपरि होता है। प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर रहे।


तुम संपूर्ण राजस्थान को एकता की श्रृंखला बाँधकर देश की स्वाधीनता के लिए कुछ करने का आदेश दे रही थी, किंतु मैं तो उस श्रृंखला को तोड़ने जा रहा हूँ। दो जातियों में जानी दुश्मनी पैदा करने जा रहा हूँ।


(क) उपर्युक्त कथन का वक्ता और श्रोता कौन-कौन हैं ? कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : उपर्युक्त कथन का वक्ता महाराणा लाखा है तथा श्रोता चारणी है। चारणी रंगमंच के पर्दे के पीछे एक गीत गा रही है, जिसका विषय है कि राजस्थान के वीर राजपूतों की शक्ति को बहुत मेहनत से संगठित किया गया है, इन्हें असंगठित न होने दिया जाए।


(ख) कौन क्या आदेश दे रहा था ?

उत्तर : चारणी संदेश दे रही थी कि संपूर्ण राजस्थान को एकता की श्रृंखला में बाँधकर देश की स्वाधीनता के लिए कुछ किया जाना चाहिए।


(ग) कौन किस श्रृंखला को तोड़ने जा रहा था और क्यों ?

उत्तर : महाराणा लाखा बूंदी के हाड़ा वीरों की धृष्टता के कारण बूंदी के किले में सेना सहित प्रवेश करने की प्रतिज्ञा कर लेता है क्योंकि नीमरा के मैदान में बूंदी के मुट्ठी-भर हाड़ाओं से पराजित होकर महाराणा लाखा को भागना पड़ा था, जिससे उनके आत्म-गौरव को ठेस पहुंची थी। इस प्रकार वह राजपूतों की संगठित शक्ति को तोड़ने जा रहा है।


(घ) वक्ता की बात सुनकर श्रोता ने क्या कहा ?

उत्तर : महाराणा लाखा की बात सुनकर चारणी कहती है कि यद्यपि बूंदी के हाड़ा शक्ति और साधनों में मेवाड़ से छोटे हैं, परंतु फिर भी वे वीर हैं। वे मेवाड़ की विपत्ति के दिनों में सहायता भी करते रहे हैं। यदि उनसे कोई धृष्टता हो गई हो, तो महाराणा उसे भूल जाएँ और राजपूत शक्तियों में स्नेह का संबंध बना रहने दें।


यदि उनसे धृष्टता बन पड़ी हो तो महाराणा उसे भूल जाएँ और राजपूत शक्तियों में स्नेह का संबंध बना रहने दें।


(क) वक्ता कौन है ? उसका कथन किसके संबंध में है ? 

उत्तर : वक्ता चरणी है। वह बूंदी के हाड़ाओं के संबंध में बात कर रही है।


(ख) महाराणा लाखा किस श्रृंखला को तोड़कर किन दो जातियों में दुश्मनी पैदा करने जा रहे थे ? 

 उत्तर: महाराणा लाखा राजपूतों की असंगठित शक्ति को संगठित करना चाहता है। इसके लिए वह सबको अपने अधीन करके स्वयं शक्तिशाली बनना चाहता है। वे बूंदी पर हमला करके हाड़ा राजपूतों को भी अपने अधीन करना चाहता है। महाराणा लाखा मेवाड़ के सिसोदियों और बूंदी के हाड़ाओं में दुश्मनी पैदा करने जा रहा है।


(ग) वक्ता ने हाड़ा की शक्ति और साधनों के संबंध में क्या कहा ?

उत्तर : चारणी कहती है कि बूंदी के हाड़ा वंश के राजपूत अत्यंत वीर थे। यद्यपि शक्ति और साधनों में वे मेवाड़ के उन्नत राज्य से छोटे थे, परंतु ऐसा होने पर भी उनकी शक्ति एवं सामर्थ्य को किसी भी प्रकार कम नहीं आंका जा सकता।


(घ) वक्ता के कथन का महाराणा ने क्या उत्तर दिया ?

उत्तर : चारणी की बात सुनकर महाराणा ने कहा कि वह बहुत देर से आई है।


अच्छा, अभी तो मैं नकली दुर्ग बनाकर उसका विध्वंस करके अपने व्रत का पालन करूँगा, किंतु हाड़ाओं को उनकी उदंडता का दंड दिए बिना मेरे मन को संतोष न होगा। सेनापति नकली दुर्ग बनवाने का प्रबंध करें। 


(क) महाराणा ने अपनी प्रतिज्ञा का पालन करने का निश्चय किस प्रकार किया ?

उत्तर : महाराणा ने प्रतिज्ञा की कि जब तक वह बूंदी के दुर्ग में सेना सहित प्रवेश नहीं करेगा, तब तक वह अन्न-जल नहीं ग्रहण करेगा।


(ख) महाराणा हाड़ाओं की किस उदंडता का दंड देना चाहते थे ?

उत्तर : नीमरा के मैदान में हाड़ाओं ने रात के समय अचानक महाराणा के शिविर पर आक्रमण कर दिया था। आकस्मिक धावे से घबराकर महाराणा के सैनिक भाग खड़े हुए थे। इससे मेवाड़ के आत्म-गौरव को बहुत ठेस पहुंची थी और महाराणा हाड़ाओं की इसी उदंडता का दंड देना चाहते थे। 


(ग) नकली दुर्ग बनाने का सुझाव किसने दिया था और क्यों ?

उत्तर : नकली दुर्ग बनाने का सुझाव चारणी ने दिया था क्योंकि महाराणा लाखा अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए दृढ़-निश्चय थे। परंतु हाड़ाओं की वीरता के सामने किले पर विजय पाने में कितने दिन लग जाएँ, इसलिए महाराणा की प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए चारणी ने नकली किला बनाने का उपाय सुझाया।


(घ) हाड़ाओं ने किस प्रकार वीरता का परिचय दिया और इसका क्या परिणाम निकला ?

उत्तर : हाड़ा राजपूत वीर सिंह नकली दुर्ग को प्राणों से प्रिय मानकर बूंदी की रक्षा करते-करते मेवाड़ की भारी सेना के सामने अपना बलिदान देता है। इस बलिदान का यह परिणाम हुआ कि राजपूतों की एकता का मार्ग प्रशस्त हो गया और मातृभूमि के मान को सर्वोपरि रखने वाले वीरसिंह की गाथा अमर हो गई। 


 मैंने सोचा है दुर्ग के भीतर अपने ही कुछ सैनिक रख दिए जाएंगे, जो बंदूकों से हम लोगों पर छूछे वार करेंगे। कुछ घंटे ऐसा ही खेल होगा और फिर यह मिट्टी का दुर्ग मिट्टी में मिला दिया जाएगा। अच्छा, अब हम चलें।


(क) वक्ता और श्रोता कौन हैं ? कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : वक्ता अभयसिंह है और श्रोता महाराणा लाखा हैं। महाराणा लाखा अभयसिंह से पूछते हैं कि नकली दुर्ग में हमारा युद्ध किससे होगा ? दुर्ग में हमारा विरोध करने वाला तो होना चाहिए। तब अभयसिंह उपर्युक्त कथन कहते हैं।


(ख) दुर्ग के भीतर अपने कुछ सैनिक रखने के पीछे वक्ता का क्या आशय था और क्यों ? 

उत्तर : अभयसिंह कहता है कि दुर्ग के भीतर अपने ही कुछ सैनिक रख दिए जाएँगे, जो बंदूकों से हम लोगों पर खाली वार करेंगे। वह चाहता था कि खेल में कुछ वास्तविकता अवश्य आनी चाहिए।


(ग) क्या आप महाराणा द्वारा नकली को करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने को उपयुक्त मानते हैं ? कारण सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर : महाराणा द्वारा नकली दुर्ग को ध्वस्त करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी करना उपयुक्त है क्योंकि महाराणा ने अन्न-जल ग्रहण न करने की प्रतिज्ञा ली थी और हाड़ा वीरों के सामने न जाने कितने दिन लग जाते दूसरा, महाराणा को अपमान की वेदना से छुटकारा मिल जाएगा।


(घ) “छूछे वार' का आशय स्पष्ट कीजिए। नकली दुर्ग की रक्षा करने पर हाड़ा सैनिकों के चरित्र की किस विशेषता की ओर संकेत मिलता है ?

उत्तर : 'छूछे वार' का अर्थ है खाली वार करना। नकली दुर्ग में महाराणा के अपने सैनिकों को उन पर खाली वार करना था क्योंकि यह तो एक खेल था। नकली दुर्ग की रक्षा करने पर हाड़ा सैनिकों की वीरता का पता लगता है। वे कभी अपनी मातृभूमि का अपमान नहीं सह सकते।


धिक्कार है तुम्हें ! नकली दी भी प्राणों से अधिक प्रिय है। जिस जगह एक भी हाड़ा है। वहाँ दी का अपमान आसानी से नहीं किया जा सकता। आज महाराणा आश्चर्य के साथ देखेंगे कि यह खेल केवल खेल ही नहीं रहेगा, यहाँ की चप्पा-चप्पा भूमि सिसोदियों और हाड़ाओं के खून से लाल हो जाएगी। 


(क) उपर्युक्त वाक्य किसने, किससे, कब और क्यों कहे हैं ?

उत्तर : उपर्युक्त वाक्य वीरसिंह ने अपने दूसरे साथी से कहे जिसने दुर्ग को नकली दुर्ग कहा था। क्योंकि वीर सिंह अपनी मातृभूमि का अपमान नहीं होने देना चाहता। चाहे वह दुर्ग नकली था, परंतु फिर भी उनके वंश के मान का मंदिर है।


(ख) कौन-सा खेल केवल खेल नहीं रहा और कैसे ?

उत्तर : महाराणा लाखा की प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए अभयसिंह ने एक नकली दुर्ग बनवाया था, परंतु वीर सिंह अपनी मातृभूमि का अपमान नहीं होने देना चाहता, चाहे वह नकली है क्योंकि वह उनके वंश का मानमंदिर है। नकली शृंदी भी उन्हें अपने प्राणों से प्रिय है। वे उसकी रक्षा के लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर देंगे। इस प्रकार नकली दुर्ग पर चढ़ाई करना अब खेल नहीं रह गया था। 


(ग) उपर्युक्त कथन के आधार पर वीर सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर : वीरसिंह महाराणा लाखा की सेना में सैनिक हैं। वह बूंदी का रहने वाला हाड़ा वंश का है। वह अत्यंत वीर, दृढ़-निश्चयी, देशभक्त तथा स्वाभिमानी है। बूंदी के नकली दुर्ग की रक्षा करते हुए उसने महाराणा लाखा के सैनिकों को नाकों चने चबवा दिए और अपना बलिदान दे दिया।


(घ) इस घटना का क्या परिणाम निकला ?

उत्तर : इस घटना का यह परिणाम निकला कि वीर सिंह के बलिदान से राजपूतों की एकता का मार्ग प्रशस्त हो गया और मातृभूमि के मान को सर्वोपरि रखने वाले वीर सिंह की गाथा अमर हो गई।


हम लोग महाराणा के नौकर हैं। क्या महाराणा के विरुद्ध तलवार उठाना हमारे लिए उचित है ? हमारा शरीर महाराणा के नमक से बना है। हमें उनकी इच्छा में व्याघात नहीं पहुंचाना चाहिए।


(क) वक्ता और श्रोता कौन-कौन हैं ? वाक्य का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : वक्ता वीरसिंह का तीसरा साथी है तथा श्रोता वीरसिंह है। महाराणा ने चारणी के सुझाव पर एक नकली दुर्ग बनवाया और उस पर विजय प्राप्त करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की योजना बनाई, पर बूंदी निवासी राणा की सेना में कार्यरत कुछ सैनिकों और वीरसिंह ने उस दुर्ग को देखा। वीरसिंह उस नकली दुर्ग की रक्षा अपने प्राणों की बलि देकर भी करना चाहता है, तब उसका तीसरा साथी उपर्युक्त कथन कहता है।


(ख) वक्ता महाराणा के विरुद्ध तलवार उठाने को उचित क्यों नहीं मानता ? क्या आप उसकी बात से सहमत हैं?

उत्तर : वक्ता तीसरा साथी महाराणा के विरुद्ध तलवार इसलिए नहीं उठानी चाहता क्योंकि वे महाराणा लाखा की सेना में सैनिक हैं और अपने मालिक को धोखा देना अनुचित है। अपने महाराणा के विरुद्ध तलवार उठाना अनुपयुक्त है। नहीं, हम उसकी बात से सहमत नहीं हैं।


(ग) वक्ता की बात सुनकर श्रोता ने क्या उत्तर दिया ?

उत्तर : तीसरे साथी की बात सुनकर श्रोता वीरसिंह अपने साथी को समझाते हुए कहता है कि माना हम राणा के नौकर हैं, परंतु जिस जन्मभूमि की धूल में खेलकर हम बड़े हुए हैं, उसका अपमान कैसे सहन किया जा सकता है। जब कभी मेवाड़ को हमारी ज़रूरत पड़ी है, तो हमारी तलवार ने राणा के नमक का बदला 1 चुकाया है।


(घ) आप वक्ता और श्रोता में से किसकी बात को उचित मानते हैं और क्यों ?

उत्तर : हम श्रोता वीरसिंह की बात को उचित मानते हैं क्योंकि अपनी मातृभूमि का मान सर्वोपरि होता है जिस जन्मभूमि की धूल में खेलकर हम बड़े हुए हैं, उसका अपमान सहन नहीं किया जा सकता। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहे। 



'महाराणा, अब तो आपकी आत्मा को शांति मिल गई होगी। अब तो आपने अपने सिर से कलंक का टीका धो लिया।


(क) वक्ता कौन है ? उसके कथन का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर : वक्ता चारणी है। चारणी महाराणा लाखा से कहती है कि नकली दुर्ग पर विजय प्राप्त करके आपको अपमान की वेदना से छुटकारा मिल गया होगा और अपने आत्म-सम्मान एवं प्रतिष्ठा पर लगे कलंक को धो दिया होगा।


(ख) महाराणा ने अपने सिर से कलंक के किस टीके को धोया और किस प्रकार ?

उत्तर : महाराणा लाखा को नीमरा के मैदान में बूंदी के शासक राव हेमू से पराजित होकर भागना पड़ा था। इस घटना के कारण महाराणा बहुत दुखी थे और इसे कलंक का टीका कहते थे। कलंक के इस टीके को धोने के लिए चारणी के सुझाव पर बूंदी का एक नकली दुर्ग बनवाया और उसका नाश किया। 


(ग) महाराणा की आत्मा को शांति मिलने की बजाय किस बात पर पश्चाताप हुआ ?

उत्तर : वीरसिंह ने ली दुर्ग को भी प्राणों से प्रिय माना तथा बूंदी के इस नकली किले की रक्षा करतेकरते मेवाड़ की भारी सेना के सामने अपना बलिदान दे देते हैं। यद्यपि महाराणा लाखा की जीत होती है, परंतु वह इसे अपनी सबसे बड़ी पराजय मानते हैं । वीर सिंह की मृत्यु के बाद महाराणा लाखा आत्मग्लानि से भर जाते हैं और उन्हें पश्चाताप होता है कि उन्होंने अपने अहंकार के कारण कितने निर्दोष प्राणों की बलि ले ली।


(घ) किसकी वीरता ने महाराणा के हृदय के द्वार खोल दिए तथा क्यों ?

उत्तर : वीरसिंह की वीरता ने महाराणा के हृदय के द्वार खोल दिए थे। वीरसिंह के बलिदान ने उनकी आँखों पर से पर्दा हटा दिया था क्योंकि उन्हें लग रहा था कि ऐसी वीर जाति को अधीन करने की अभिलाषा करना पागलपन था।



वीरसिंह की वीरता ने मेरे हृदय के द्वार खोल दिए हैं। मेरी आँखों पर से पर्दा हटा दिया है। मैं देखता हूँ ऐसी वीर जाति को अधीन करने की अभिलाषा करना पागलपन है।



(क) वीरसिंह ने किस वीरता का परिचय दिया ?

उत्तर : जब वीरसिंह को पता लगता है कि महाराणा लाखा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए बूंदी का नकली दुर्ग बनवाया है और उसे तोड़ने का निश्चय किया है, तो उसका स्वाभिमान जाग जाता है। वह कहता है कि यह दुर्ग हमारे वंश के मान का मंदिर है। नकली बूंदी भी हमें प्राणों से अधिक प्रिय है। इसे हम मिट्टी में नहीं मिलने देंगे। बूंदी के नकली दुर्ग की रक्षा करते-करते उसने महाराणा लाखा के सैनिकों को नाकों चने चववा दिए और अपना बलिदान दे दिया।


(ख) वक्ता और श्रोता कौन-कौन हैं ? श्रोता के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:  वक्ता महाराणा हैं और श्रोता चारणी है। वह संपूर्ण राजस्थान को एकता की श्रृंखला में बाँधकर रखना चाहती है। वह राजूपतों के आपसी कटु संबंधों को समाप्त कर उनमें स्नेह का संबंध बनाने का आग्रह करती है। वह देशभक्त है। वह संपूर्ण राजपूत राज्यों में एकसूत्रता का बंधन देखना चाहती है। चारणी ने महाराणा लाखा को नकली दुर्ग बनाने का ऐसा उत्तम मार्ग बताया, जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।


(ग) 'हृदय के द्वार खोलना' और 'आँखों पर से पर्दा हटाना' का प्रयोग किस उद्देश्य से किया गया

उत्तर : महाराणा को इस बात का तनिक भी अनुमान नहीं था कि उसी के सैनिकों में से वीर सिंह और कुछ सैनिक बूंदी के इस नकली दुर्ग की रक्षा करते-करते अपने प्राण उत्सर्ग कर देंगे। तब महाराणा के मन के द्वार खुल गए और वास्तविकता सामने आ गई कि अपनी मातृभूमि का मान सर्वोपरि होता है। वीरसिंह की मृत्यु के बाद महाराणा लाखा आत्मग्लानि से भर जाते हैं। वह उसके शव का आदर करते हैं और उसे सच्चा बहादुर बताते हैं।


(घ) महाराणा ने अपनी किस अभिलाषा को पागलपन कहा है और क्यों ?

उत्तर : महाराणा सोचता है कि बूंदी के हाड़ा जैसी वीर जाति को अधीन करने की उसकी अभिलाषा करना पागलपन है क्योंकि बूंदी के रहने वाले उसी के सैनिकों में से वीरसिंह और कुछ अन्य सैनिक सुखदुख में मेवाड़ के साथ रहते थे परंतु अपनी मातृभूमि का अपमान कभी नहीं सहन कर सकते थे। उन्होंने नकली दुर्ग को भी अपने प्राणों से प्रिय माना उसकी रक्षा करते-करते अपना बलिदान कर देते हैं। तो ऐसी वीर जाति को अपने अधीन करने की सोच ही पागलपन है।

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