चलना हमारा काम है - साहित्य सागर |
अवतरणों पर आधारित प्रश्न
गति प्रबल पैरों में भरी, फिर क्यों रहूँ दर-दर खड़ा, जब आज मेरे सामने है रास्ता इतना पड़ा। जब तक न मंज़िल पा सकूँ, तब तक मुझे न विराम है। चलना हमारा काम है।
(क) 'गति प्रबल पैरों में भरी'-पंक्ति द्वारा कवि मनुष्य को क्या संदेश दे रहा है?
उत्तर : कवि मनुष्य को प्रेरणा दे रहा है कि उसे जीवन में निरंतर सक्रिय और गतिशील रहना चाहिए। कवि कहते हैं कि मानव असीम शक्ति से संपन्न प्राणी है, उसमें अद्भुत क्षमताएँ हैं, जिसके कारण वह बड़ी-से-बड़ी चुनौतियों का सामना करने की शक्ति रखता है।
(ख) कवि मनुष्य को दर-दर पर खड़ा न होने की प्रेरणा क्यों दे रहा है ?
उत्तर : कवि कहता है कि हे मनुष्य ! जब तक तेरे पैरों में अद्भुत शक्ति एवं गति विद्यमान है, तो फिर दर-दर खड़ा होने की क्या आवश्यकता है?
(ग) 'जब तक न मंज़िल पा सकूँ, तब तक मुझे न विराम है'-पंक्ति द्वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहता है?
उत्तर : कवि अभी अपनी मंज़िल पर नहीं पहुँच पाया है, अभी उसके सामने लंबा रास्ता पड़ा है। जब तक वह अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच जाता, तब तक वह विश्राम नहीं करेगा और चलता रहेगा।
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : कवि मनुष्य को प्रेरणा देते हुए कहता है कि तेरे चरण असीम शक्ति एवं गति से युक्त हैं, इसलिए अपनी मंजिल को पाने के लिए सतत् प्रयास करता रहा और दर-दर खड़े होने की अपेक्षा निरंतर चुनौतियों का सामना करते हुए अपने गंतव्य की ओर बढ़ता रहा।
कुछ कह लिया, कुछ सुन लिया कुछ बोझ अपना बँट गया, कुछ रास्ता ही कट गया। चलना हमारा काम है। अच्छा हुआ तुम मिल गईं क्या राह में परिचय कहूँ, राही हमारा नाम है।
(क) 'कुछ बोझ अपना बँट गया'- कवि के यह कहने का क्या भाव है?
उत्तर : कवि कहते हैं कि जीवन-पथ पर चलते हुए अनेक राही मिल जाते हैं। उनसे अपने सुख-दुख को बाँट लेने पर मन का बोझ कुछ हल्का हो जाता है।
(ख) 'अच्छा हुआ तुम मिल गईं'-कवि को कौन, कहाँ मिल गई? उसके मिलने से उसे क्या लाभ हुआ?
उत्तर : कवि अपनी प्रेमिका के संबंध में कहता है कि अच्छा हुआ, जो जीवन के मार्ग पर चलते हुए तुम्हारा सान्निध्य प्राप्त हो गया। तुम्हारे साथ रहने से कुछ समय आसानी से बीत गया और कुछ रास्ता आसानी से कट गया।
(ग) कवि अपना परिचय किस रूप में देता है और क्यों ?
उत्तर : कवि कहता है कि इस राह पर चलते हुए मैं अपना परिचय किस प्रकार दूँ ? मेरा परिचय तो केवल इतना है कि मैं जीवन-पथ का एक पथिक मात्र हूँ। हमारा काम तो अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहना है। ) जीवन अपूर्ण लिए हुए,
पाता कभी, खोता कभी आशा-निराशा से घिरा, हँसता कभी, रोता कभी। चलना हमारा काम है। गति-मति न हो अवरुद्ध, इसका ध्यान आठों याम है।
(क) कवि ने जीवन को अपूर्ण क्यों कहा है ?
उत्तर : जीवन में कभी सुख है, तो कभी दुख, कभी कुछ प्राप्त हो जाता है, तो कभी कुछ खोना भी पड़ता है। यह जीवन आशा और निराशा से भरा हुआ है, इसलिए ऐसे जीवन को पूर्ण नहीं कहा जा सकता।
(ख) उपर्युक्त पंक्तियों में जीवन की किन-किन विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर : कवि कहते हैं कि असफलता, निराशा और दुखों का सामना होने पर मनुष्य को हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि यह स्थिति सदा नहीं रहती। दुख के बाद सुख, निराशा के बाद आशा और असफलता के बाद सफलता अवश्य मिलती है।
(ग) 'गति-मति न हो अवरुद्ध'-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : आशा और निराशा, सुख और दुख, प्रसन्नता और विवाद, सफलता और असफलता से भरे इस जीवन की गति कभी रुकनी नहीं चाहिए। क्योंकि गति ही जीवन है, अतः हमें अपने लक्ष्य की ओर निरंतर गतिशील रहना चाहिए। उत्तर:
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवि मनुष्य को क्या प्रेरणा दे रहा है ?
उत्तर : कवि कहते हैं कि सुख-दुख, सफलता-असफलता आदि मनुष्य की गति को रोक न पाएँ और वह निरंतर अपने जीवन-पथ पर गतिशील बना रहे क्योंकि जीवन में कोई स्थिति सदा के लिए नहीं रहती।
इस विशद विश्व-प्रवाह में किसको नहीं बहना पड़ा सुख-दुख हमारी ही तरह किसको नहीं सहना पड़ा। फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ मुझ पर विधाता वाम है। चलना हमारा काम है।
(क) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने मानव-जीवन की किस सच्चाई को उजागर किया है ?
उत्तर : कवि ने मानव-जीवन की इस सच्चाई को उजागर किया है कि इस संसार में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो सुख-दुख, आशा-निराशा तथा सफलता-असफलता से प्रभावित नहीं हुआ हो। सभी को सुख-दुख सहन करने पड़ते हैं।
(ख) “फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ, मुझ पर विधाता वाम है'-पंक्ति द्वारा कवि क्या संकेत कर रहा है?
उत्तर : कवि कहते हैं कि जीवन में दुख, निराशा और असफलता सदा के लिए नहीं रहते और साथ ही सदा के लिए सुख भी किसी को प्राप्त नहीं होते। इन दोनों का क्रम समान रूप से चलता रहता है। कवि कहता है कि दुख आने अथवा दुख के क्षणों में वह क्यों व्यर्थ में कहता फिरे कि मुझ पर विधाता रुष्ट है अथवा भाग्य मेरे विरुद्ध है। कवि का आशय है कि सुख-दुख का आना-जाना तो जीवन की वास्तविकता तथा पहचान है।
(ग) उपर्युक्त पंक्तियों में भाग्य पर रोने को मनुष्य की किस दुर्बलता की निशानी बताया गया है ?
उत्तर : जो व्यक्ति दुखों, असफलताओं अथवा निराशाओं से घबराकर अपने भाग्य को दोष देने लगते हैं, वे भाग्यवादी कहलाते हैं। उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी अपने दुखों से विचलित होकर अपने भाग्य को दोष देना होता है।
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवि क्या संदेश दे रहा है ?
उत्तर : कवि संदेश दे रहे हैं कि मनुष्य को यह बात समझनी चाहिए कि सुख और दुख दोनों जीवन के अनिवार्य अंग हैं। केवल भाग्यवादी ही दुख या असफलता का सामना करने पर अपने भाग्य को दोष देते हैं। परंतु दुखों से विचलित होना या अपने भाग्य को दोष देना उचित नहीं हैं। मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा प्रत्येक पग पर कुछ-न-कुछ रोड़ा अटकता ही रहा पर हो निराशा
क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है। चलना हमारा काम है।
(क) 'मैं पूर्णता की खोज में, दर-दर भटकता ही रहा'-पंक्ति द्वारा कवि का क्या आशय है ?
उत्तर : कवि कहता है कि वह पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता रहा, परंतु वह जिस ओर भी कदम बढ़ाता उसी ओर कोई-न-कोई रुकावट आकर खड़ी हो जाती थी।
(ख) 'प्रत्येक पग पर कुछ-न-कुछ रोड़ा अटकता ही रहा'-पंक्ति द्वारा मानव-जीवन की किस सच्चाई को उजागर किया गया है?
उत्तर : जीवन के मार्ग पर चलते हुए हर कदम पर, कोई-न-कोई रुकावट आकर खड़ी हो जाती थी। जीवन में पूर्णता की खोज के वह जिस ओर भी कदम बढ़ाता, उसे दुखों, असफलताओं, निराशाओं आदि का सामना करना पड़ता, परंतु वह निराश नहीं हुआ। यही जीवन की सच्चाई है। पुस्तिका-साहित्य सागर [51]
(ग) 'जीवन इसी का नाम है'-पंक्ति द्वारा कवि ने मानव जीवन के संबंध में क्या कहा है ?
उत्तर : जीवन पथ पर आगे बढ़ते समय अनेक कठिनाइयों एवं बाधाओं का सामना करना पड़ता है, परंतु इससे कवि को निराशा नहीं होती, क्योंकि वह जानता है कि जीवन-पथ पर बढ़ते समय कठिनाइयों का सामना होना, बाधाओं का आना स्वाभाविक है-इसी का नाम तो जीवन है।
(घ) उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा स्पष्ट कीजिए कि जीवन में आने वाली बाधाओं का सामना हमें किस प्रकार करना चाहिए ?
उत्तर : व्यक्ति का कर्तव्य है कि उसे दुख, निराशा और असफलता से निराश होकर बैठ नहीं जाना चाहिए, बल्कि निरंतर गतिशील बने रहना चाहिए तथा दुखों की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मानव का यही कर्तव्य है कि वह बाधाओं एवं दुखों को सहन करता हुआ जीवन-पथ पर अबाध गति से बढ़ता रहे। कुछ साथ में चलते रहे
कुछ बीच ही से फिर गए। पर गति न जीवन की रुकी जो गिर गए सो गिर गए। चलता रहे हरदम, उसी की सफलता अभिराम है। चलना हमारा काम है।
(क) 'कुछ साथ में चलते रहे, कुछ बीच ही से फिर गए'-पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :कवि कहता है कि जीवन-पथ पर बढ़ते हुए उसे अनेक साथी मिले। कुछ साथी तो उसके साथ चलते रहे, परंतु कुछ बीच में ही रुक जाते हैं अर्थात् कुछ का साथ बीच में ही छूट जाता है, परंतु इसी कारण जीवन की गति रुकनी नहीं चाहिए। उत्तर :
(ख) 'चलना हमारा काम है'- कविता में भाग्यवाद पर किस प्रकार चोट की गई है?
उत्तर : इस कविता में कवि ने ऐसे लोगों पर चोट की है, जो भाग्यवादी हैं तथा दुख, निराशा या असफलता का सामना होने पर यह कह देते हैं कि मेरा तो भाग्य ही खराब है। कवि के अनुसार ऐसे लोग नहीं जानते कि सुख और दुख दोनों जीवन के अनिवार्य अंग हैं। अपने भाग्य को दोष देना उचित नहीं होता।
(ग) कवि के अनुसार जीवन में सफलता किसे मिलती है?
उत्तर : जीवन के मार्ग पर चलते हुए साथी आते-जाते रहते हैं। उनमें से कुछ बीत में साथ छोड़ देते हैं, तो कुछ बीच में समाप्त हो जाते हैं, परंतु जीवन में सफलता केवल उन्हें ही प्राप्त होती है, जो बीच में साथ छोड़ देने वाले साथियों की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं।
(घ) कवि ने कविता में 'चलना हमारा काम है'-पंक्ति को बार-बार क्यों दोहराया गया है? कवि इससे क्या प्रेरणा दे रहा है ?
उत्तर : कवि ने कविता में 'चलना हमारा काम है'–पंक्ति को बार-बार इसलिए दोहराया है क्योंकि जीवन में निरंतर सक्रियता और गतिशीलता का बहुत महत्त्व है। सुखों और दुखों से भरे इस जीवन में मनुष्य की गति कभी अवरुद्ध नहीं होनी चाहिए क्योंकि जीवन गति का ही नाम है।